भोपाल . प्रदेश में अच्छे मानसून से नदियां उफान पर हैं, साथ ही इसने हैंडपंपों को भी तर कर दिया है। गर्मी में सूख गए हैंडपंपों में से करीब 90 फीसदी अब भरपूर पानी उगल रहे हैं। पूरी संभावना है कि अगली गर्मियों तक इनमें पानी रहेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। प्रदेश में कुल 5 लाख 45 हजार हैंडपंप हैं। इस बार गर्मी में जून तक इनमें से करीब 35 हजार हैंडपंप जलस्तर नीचे जाने की वजह से बंद हो गए थे। मानसून में अच्छी बारिश के बाद इनमें से 30 हजार से ज्यादा हैंडपंप फिर पानी देने लगे हैं। करीब चार हजार हैंडपंप अब भी बंद हैं। ये हैंडपंप मुख्य रूप से ग्वालियर अंचल और टीकमगढ़ क्षेत्र के हैं।
प्रदेश में 12500 नलजल योजनाएं : ग्रामीण क्षेत्र पेयजल के लिए मुख्य रूप से हैंडपंप पर ही निर्भर हैं। प्रदेश में 5 करोड़ से ज्यादा आबादी ग्रामीण है। इनमें से 80 प्रतिशत जनता पेयजल के लिए हैंडपंपों पर निर्भर है। प्रदेश में करीब 12500 नल जल योजनाएं हैं, लेकिन ये ग्रामीण आबादी का 15 से 20 फीसदी ही कवर कर पाती हैं। ऐसे में हैंडपंप चालू होने से ग्रामीणों को पेयजल संकट नहीं रहेगा।
प्रदेशभर के ग्रामीण इलाकों में कुल पांच लाख 45 हजार हैंडपंप लगे : केमिकल डाला जा रहा है-पानी ज्यादा गिरने से उसके साथ गंदगी भी जाती है। लोगों को साफ पानी मिले, इसलिए हैंडपंपों में सोडियम हाइपोक्लोराइट सॉल्यूशन भी डाला जा रहा है। आमतौर पर मानसून के पहले और बाद में दो बार ये सॉल्यूशन डाला जाता है, लेकिन इस बार ज्यादा बारिश के कारण बीच में भी इसे हैंडपंपों में डाला जा रहा है।
- 35 हजार हो गए थे बंद
- 30 हजार में फिर निकला पानी
नवंबर में ही जवाब देने लगते हैं हैंडपंप - इस बार की बारिश से हैंडपंप अगली गर्मियों तक पानी देने लायक हो गए हैं। लाेक स्वास्थ्य यांत्रिकी के अधिकारियों के मुताबिक सामान्य से कम वर्षा होने पर कई हैंडपंप नवंबर से ही जवाब देने लगते हैं। बुंदेलखंड, मालवा, ग्वालियर, चंबल क्षेत्र में ज्यादा समस्या आती है। अगर अच्छा पानी नहीं गिरता तो इन 35 हजार में से मात्र 3-4 हजार हैंडपंप ही चालू हो पाते।
अब गर्मी तक नहीं होगी परेशानी : जलस्तर नीचे जाने से जो हैंडपंप बंद हुए थे, उनमें से अधिकतर चालू हो गए हैं। उम्मीद है अगली गर्मी तक उनसे पानी मिल सकेगा। सभी जिलों को क्लोरीनेशन के निर्देश भी दिए गए हैं, जिससे लोगों को स्वच्छ पानी मिल सके। - संजय शुक्ला, प्रमुख सचिव, पीएचई